Friday, January 13, 2012

गर्दिश...

अच्छा हो गर्दिशों के
सैलाब आते रहें
हम तड़फते रहें
वो मुस्कराते रहें...

रात

कितनी गमजदा होकर रात जा रही है,
कफ़न ओड़कर जैसे कोई लाश जा रही है,
इंतज़ार अब सुबह के सूरज का क्या करना,
दर पर जब हमारे, फिर वही रात रही है

Thursday, January 5, 2012

मेरे अन्तर्मन...

मेरे अन्तर्मन !
भूल जा अब
निर्झर की झरझर
नदिया की कलकल
कोयल की कुहुक
और नुपुर की छुमछुम
बन जा अब
तू सागर सा
अपार।

मेरे अन्तर्मन !
तोड़ कर सारी उलझन
बिसरा दे अब
बंधन के राग
सावन की बरसात
यौवन का उन्माद
देख क्षितिज के पार
प्रकाश पुंज का है
कैसा अनुपम
आगार।

मेरे अंतर्मन

मेरे अंतर्मन!
भूल जा अब
निर्झर की झरझर
नदिया की कलकल
कोयल की कुहुक
और नुपुर की छुमछुम
बन जा अब
तू सागर सा
अपार।
मेरे अंतर्मन!
तोड़ कर सारी उलझन
बिसरा दे अब
बंधन के राग
सावन की बरसात
यौमन का उन्माद
देख क्षितिज के पार
प्रकाश पुंज का है
कैसा अनुपम
आगार।