Babuji...
Friday, January 13, 2012
रात
कितनी
गमजदा
होकर
रात
जा
रही
है
,
कफ़न
ओड़कर
जैसे
कोई
लाश
जा
रही
है
,
इंतज़ार
अब
सुबह
के
सूरज
का
क्या
करना
,
दर
पर
जब
हमारे
,
फिर
वही
रात
आ
रही
है
।
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment