Thursday, January 5, 2012

मेरे अंतर्मन

मेरे अंतर्मन!
भूल जा अब
निर्झर की झरझर
नदिया की कलकल
कोयल की कुहुक
और नुपुर की छुमछुम
बन जा अब
तू सागर सा
अपार।
मेरे अंतर्मन!
तोड़ कर सारी उलझन
बिसरा दे अब
बंधन के राग
सावन की बरसात
यौमन का उन्माद
देख क्षितिज के पार
प्रकाश पुंज का है
कैसा अनुपम
आगार।

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